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लक्ष्मी हॉरर फिल्म है या कॉमेडी समज के बहार है 2. 21 मिनट की बर्बादी (स्टार 2/5)

फिल्म : लक्ष्मी 
निर्माता : फॉक्स स्टार स्टूडियोज़, केप ऑफ गुड फिल्म्स, शबीना एंटरटेनमेंट, तुषार एंटरटेनमेंट हाउस
निर्देशक : राघव लॉरेंस
कलाकार : अक्षय कुमार, किआरा आडवाणी, शरद केलकर, राजेश शर्मा, आयशा रज़ा मिश्रा, मनु ऋषि चड्ढा और अश्विनी कलसेकर आदि ।
रेटिंग : 2/5 
समीक्षक:   पुष्कर ओझा  
 
फिल्म कंचना की रेमिक है लक्ष्मी  हिंदी के इस वर्जन में अक्षय कुमार नज़र  आ रहे हैं, आइये जानते हैं लक्ष्मी के बारे में  कहानी की बात करते है 
                   
   कहानी की बात करते है 'लक्ष्मी' आसिफ (अक्षय कुमार) और रश्मि (किआरा आडवाणी) की कहानी है मुस्लिम लड़के से शादी के कारन परिवार रश्मि से न खुश है, रश्मि के माता-पिता की शादी की 25वीं सालगिरह है इस कारन रश्मि को माँ का बुलावा आता है, दोनों आसिफ रश्मि घर पर आते है, आपको बता दे की आसिफ अन्धविश्वास और भूत प्रेत मानाने वालो को जागरूक करने का काम करता है, और वह यह अक्सर कहता है की जिस दिन वह भूत देख लेंगा वह चूड़ी पहन लेंगे,  फिर क्या  आसिफ के अंदर एक भूत प्रवेश करता है जो ट्रांसजेंडर है। इसको भगाने के लिए हिंदू बाबा, मुस्लिम बाबा का सहारा लिया जाता है तो पता चलता है कि इस भूत का नाम 'लक्ष्मी' जिसे कुछ लोंगो ने ज़मीं के खातिर मार दिया और उसी ज़मीं में दफ़न कर दिया जो लक्ष्मी की होती हैं जो अब  बदला लेना चाहती है। 
 कमजोर कड़ी  'लक्ष्मी' में कॉमेडी-हॉरर के साथ-साथ इमोशन और मैसेज भी हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि ये सभी बिना सिचुएशन के घुसाए गए हैं। ऐसा लगता है कि कोई आपको जोर-जबरदस्ती कर हंसाने की या डराने की कोशिश कर रहा है। माहौल बनाए बिना यह कोशिश निरर्थक लगती है और 'लक्ष्मी' का ज्यादातर हिस्सा इसी बात का शिकार है। फिल्म का शुरुआती एक घंटा निराशाजनक है। इस हिस्से में कॉमेडी को महत्व दिया गया है, जो कि एकदम सपाट है। बीच-बीच में हॉरर सीन आते हैं, लेकिन प्रभावशाली नहीं हैं। 
  अभिनय की बात करते हैं अक्षय कुमार ने अपने अभिनय को निखार न चाहे पर शायद उन्होंने कांचना नहीं देखि या नक़ल नहीं कर पाए, लेकिन कमजोर स्क्रीनप्ले के कारण वो भी असफल ही रहे। किआरा आडवाणी भी स्क्रीन पर शो पीस बन कर रह गई। छोटे रोल में शरद केलकर काफी असर छोड़ते हैं। राजेश शर्मा, मनु ऋषि चड्ढा, अश्विनी कलसेकर, आयशा रज़ा बेहतरीन कलाकार हैं, लेकिन कमजोर निर्देशन की वज़ह से अपने कैरेक्टर के साथ न्याय नहीं कर पाए।निर्देशक के रूप में राघव लॉरेंस ने कहानी को बहुत ज्यादा नाटकीय तरीके से पेश किया है। फ़िल्म की कास्ट में शामिल लगभग सभी कलाकारों ने ओवर एक्टिंग की है जो आंखों के जरिये दिल मे उतर नहीं पाती है। फिल्म का संगीत औसत दर्जे का है। 'बुर्ज खलीफा' मिसफिट है। 'बम भोले' का फिल्मांकन शानदार है और यह फिल्म में ऊर्जा व गति पैदा करता है। 
संगीत की बात करते है हॉरर फिल्म में संगीत और स्पेशल इफ़ेक्ट के बाद ही कलाकारों की एक्टिंग नज़र आती है, पर यहाँ संगीत भी फीका ही नज़र आया  गाना बृज खलीफा काफी हिट हुआ है, पर फिल्म में गाने की कही आवश्यकता नही थी बैकग्राउंड संगीत भी कोई डरावना नहीं हैं |  
 
लक्ष्मी हॉरर फिल्म है या कॉमेडी समज के बहार है 2. 21 मिनट की बर्बादी |